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जिले के बारे में

जिला मुख्‍यालय विदिशा के नाम से जिले का नाम हैं। विदिशा के बारे में वाल्‍मीकी रामायण में उदाहरण मिलता हैं। जो कि यह दर्शाता है कि शत्रुघ्न का बेटा शत्रुघाति विदिशा का प्रतिनिधि हुआ करता था ।  ब्राम्‍हपुराण में भी इस जगह का वर्णनन मिलता हैं। जिससे इस जगह का नाम हुआ भद्रावती जो कि यवनों का रहने का स्‍थान था। यावनों जिन्‍होंने युधीष्ठिर को अश्‍वमेघ यज्ञ के लिये घोड़ा दिया था। प्राचीन एतिहासिक शहर बैसनगर विदिशा से सिर्फ ३ किलोमीटर दूर हैं। जो प्राचीन विदिशा के बारे में बताता हैं। कुछ शताब्‍दीयां पूर्व ईसापूर्व बैसनगर एक बहुत ही महत्‍वपूर्ण जगह थी । जहॉं बुद्ध, जैन एवं ब्रम्‍ह साहित्‍य जैसे बैसनगर, वैश्‍यनगर आदि। राजा रूकमान्‍दघाह जिसने अपनी पत्‍नी विस्‍वा का अप्‍सराओं के लिये त्‍याग कर दिया था; उनके नाम पर शहर का नाम विश्‍वानगर हुआ । बैसनगर शहर के समाप्‍त होने पर पश्चिम कि तरफ, बेतवा नदी के किनारे सातवी शताब्‍दी में एक नये शहर का उदय हुआ। जिसका नाम भेलस्‍वामिन; जो कि भिलसा या भेलसा का अपभ्रन्‍श हैं।

मौर्य :-

सम्राट अशोक १८ साल की उम्र में उसके पिता बिन्‍दुसार द्वारा सम्राट अशोक को उज्‍जैन राज्‍य संभालने को दिया जिस समय वह पाटलीपुत्र लौट रहें थे; उस समय वह विदिशा या बैसनगर के साहुकार की बेटी देवी से मिले जो शाक्‍य कुल की थी और उन्‍होंने उनके साथ विवाह किया। उनका बेटा महेंद्र और बेटी सगंमित्रा दोनों ही इतिहास में बहुत नामचीन थे। क्‍योकि उनके पिता शिलॉन में धर्म के प्रतिनिधि थें । और दोनों बौद्ध पेड़ तथा भगवान बुद्ध के उपदेशों को देश भर में फैलाते रहें। देवी कभी पाटलीपुत्र नहीं गई । पूरे समय बैसनगर में ही रही तथा भगवान बुद्ध की अर्चना में ही लगी रही। मठ के समान भवन बनाकर वह सॉंची से ८ किलोमीटर दूर विदिशा शहर में रही । जो कि देवी के रहने के लिये बनाया गया था।  शिलॉन जाने से पहले देवी का बेटा महेन्‍द्र मॉं से मिलने जब बैसनगर आया तब उसकी मॉं उसे चैत्‍यगिरी लेकर गई। कालान्‍तर में मान्‍यता है। कि वे ही सॉची के स्‍तूप हैं।

मौर्य के बाद :-

 विदिशा पर सूंगा, कान्‍वा, नागा, वाकाटका, गुप्‍त, कलचुरी, महिष्‍मति, परमार, चालुक्‍य ने राज किया। इन सभी का विदिशा पर राज करने के प्रमाण प्राप्‍त हैं। जिनके मूर्तियां, सिक्‍के, शिलालेख आदि जिले में पुरातत्‍व विभाग कार्यालय में मौजुद हैं। सिंधिया ग्‍वालियर राज्‍य जो ईशानगर, परगना तहसील के अधीन रहा।  १९०४ में विदिशा एक जिला बना जिसमें दो तहसील विदिशा एवं बासौदा १९४८ तक थी । जिले का विस्‍तार १९४९ में कुर्वयी राज के मिलने के बाद सिरोंज जो कि पहले राजस्‍थान के कोटा जिले में था एवं पिकलॉन भोपाल राज्‍य में था इनको मिलाकर नये मध्‍यप्रदेश समाहित किया गया। उसी समय जिले और शहरों को मिलाकर विदिशा जिले को नाम रखा गया। मुगल सल्‍तन्‍त के दौरान औरंगजेब ने इस शहर का नाम आलम गिरी नगर रखने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता प्राप्‍त नहीं हुई।  वर्तमान में भी यह जिला बैसनगर, उदयपुर, ग्‍यारसपुर, उदयगिरी, बादौहा पठारी आदि के साथ अस्तित्‍व में हैं।